सुनी थी एक कहानी...


बहुत साल पहले 
सुनी थी एक कहानी 
प्यासा कौवा भटकता 
मारा-फिरा पानी के लिए 
कहीं दूर जंगल तेहत 
एक घड़ा नज़र आया 
बड़ी आस से कौवा 
पानी की तलाश में 
उम्मीद ले पहुंचा 
देखा झांकर घड़े में 
बहुत कम पानी था 
परछाई नज़र आती थी 
मगर पानी को चखना 
कव्वे के सीमा के बाहर रही 
सूझ-बूझ से कव्वे ने 
कंकड़ भर-भर के डाले 
उन दिनों तो पानी घड़े में 
आगया ऊपर श्रम से 
मगर अधिक कंकड़ से 
पानी की सूरत भी ढकी 
रहा जा सकती है 
कंकड़ कितना और कब 
डालना है इसकी भी 
सूझ-बूझ कव्वे को थी 
ताना हो या बाना 
हर वक़्त काम नहीं आती 
और ज्यादा से भी 
रास नहीं आती !

~ फ़िज़ा 

Comments

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !