मौसम के बदलने से रुत बदलती तो
कितना अच्छा होता
वक़्त के गुजरने से बुरे दिनों को टालदे तो
कितना अच्छा होता
ग़लतियाँ हर किसी से होती है यही समझलेते तो
कितना अच्छा होता
ज़िन्दगी आडम्बरी चीज़ों से बढ़कर भी है जान लेते तो
कितना अच्छा होता
मकान सजाने से घर बन जाता तो
कितना अच्छा होता
काश लोग घर की सजावट की वस्तु जैसे होते तो
कितना अच्छा होता
लोग एक-दूसरे को इंसान ही समझ लेते तो
कितना अच्छा होता
हार-जीत छोड़कर एक छत के नीचे शांति से जी लेते तो
कितना अच्छा होता
कब समझे कोई लेके जाना तो कुछ नहीं फिर तो
क्यों बटोरकर दिखावा करना ?
कब समझेंगे गोया, ये तो अब सबको नज़र आता है की
क्या अच्छा है क्या बुरा?
कब समझेगा इंसान? काश पूरी होती भूख दिखावे से और हक़ीक़त नज़र आती तो
कितना अच्छा होता
बस... काश सबकुछ कितना अच्छा होता...
गर सबने ये कविता पढ़ कर अपना लिया होता तो...
कितना अच्छा होता !!!!!
~ फ़िज़ा
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