Saturday, November 08, 2014

मैं खुश हूँ जहांवालों तुम्हारी दुआयें पाकर...

खुश हूँ में आज ज़िंदा रेहाकर यहाँ
याद आता है मुझे बचपन मेरा
जहां पापा की लाड़ तो माँ की डांट
कयी  पल जी लेना उस पल तब 
जब माँ की ना और पापा की हां पर 
सैकड़ों नमन नसमस्तक होकर उनको
जिनकी वजह से हूँ मैं यहाँ आबाद 
जीवन के इस मोड पर आकर जब 
देखूँ उस पार जहां कभी सेहमी सी
थी मैं घबराई इस दुनिया से 
उसी ने दी मुझे होसला दिलेरी का 
कर मुझे बुलंद इस जहां ने दिया प्यार
शायद जो वो भी भूल गये हैं इस बात को 
मगर जैसे माँ की हमेशा सीख थी मुझे 
ना भूलो पिछलों को ना भूलो अपनो को 
बढ़ो आगे जहाँ में ज़मीन पर पॉव रखकर 
मैं खुश हूँ जहांवालों तुम्हारी  दुआयें पाकर
~ फ़िज़ा 

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खुदगर्ज़ मन

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