जिधर ले जाता चले वहीं हम आते
कभी पेड़ों के पीछे तो कभी बादल आ जाते
ढूंडती हुई निकल पड़ी सवारी जाते-जाते
देखा मेरी ज़िंदगी "रेडियो ज़िंदगी" के आते-आते
मुझे मिला मेरा साजन ज़िंदगी के रास्ते
ए चाँद मेरे मुझे मिला भी तो वहीं जाते - जाते
जहां शाम ज़िंदगी की करने निकले थे समा सजाते
~ फ़िज़ा
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