Wednesday, November 12, 2014

सब तो भाग रहे हैं दौड़ में....



ज़िंदगी के सारे साधन हैं यहाँ
मगर जीता कौन है यहाँ
सब तो भाग रहे हैं दौड़ में
किसका पीछा करते हैं ना जानते हुये
इस होड़ में जाने कितनो को कुचल दिये
वहीं दोस्ती भी तोड़-मरोड़ते हुये
चले हैं अपनी धुंद में सोचकर खुदा अपनेको
गिरता है जब ठोकर खाकर तब संभालता हुया
मगर कौन है अब बचा हुया जो आसरा ही देदे उसे
पछतावे का चेहरा लेकर कहाँ अब जायेगा टू मुर्झाये
देख सब तुझे ही घूरते हैं अब हर तरह से 
के अब तेरा क्या होगा प्यारे इस जहां से
जब खुदा मानकर चल रहा था तब
नज़र कोई नहीं आया तुझे अब
किस मुंह से मांगेगा हाथ बढ़ाकर
के देने बद्दुआ तो कयी आयेंगे मगर
सच्चा दोस्त एक भी होता अगर
तो शायद लेलेता तुझे अपने घर 
ना पड इन जंजालों में तू सफर
अभी चलना बहुत दूर है तुझे अगर
जान ले हक़ीक़त को ज़रा करीब से मगर 
के आना-जाना लगा रहेगा दुनिया में सेहर 
क्यूं ना खुशी से सब्र से तो सबकी मदत से 
छोड़ आ माया को किसी जंजाल में 
साथ ले शांती का मन-मस्तिष्क में 
जी भरपूर मगर ना नुकसान कर किसी का
~ फ़िज़ा

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