Saturday, February 17, 2007

एक नया बीज़ बन के कोई अरमान

अक्‍सर इंसान ख्‍वाब देखता है किंतु उसे पूरा होते देखने में कई बार वो आडंबरी
रस्‍मों में फँस जाता है क्‍योंकि वो भी आखिर इन्‍हीं गुँथियों में गुँथ जाता है
बहुत दिनों बाद पेश है ....राय की मुंतजि़र



दिल की धडकन आज फिर हूई है जवान

के तरंगों का कारवाँ हुआ हैवान

सुखी बँज़र ज़मीन पर आज फिर

एक नया बीज़ बन के कोई अरमान

आँखों से तो ले ही गया नींद

दे गया हजा़रों सपने जवान

कल जब कहा था छू कर के मेरा हाथ

दिल भी और जान भी रेह गये हैरान

इंतजा़र मे़ है 'फिजा़' ये दिल अब तो

के कब रस्‍मों से हों रिश्‍ते बयान


फिजा़

6 comments:

Pritika Gupta said...

this one was good..

Ajnabi said...

Hey Dawn,

you are too good.

btw do you listen to gazals of Mehdihasan or not ?

Payal said...

everything is nice..
But a lil MATRA isn't suiting.
It's like some error.. thought we know its correct .. has to come before word. like AAJ FIR.
I hope you got that
Anyways wonderful blog :)

മര്‍ത്ത്യന്‍ said...

Bhadiya Dawn ji

Dawn said...

pritika gupta: thanks appreciated your gesture!
Cheers

ajnabi: Thank you for appreciating my poetry ..its an inspiration to me :)
Yes I do listen to Mehdihasan's ghazals too :)
Cheers

payal: Am not sure if you are using firefox as some of the software dont allow other languages read properly, so if you try IE 7 then I guess there should not be any matra problems.
I appreciate your visit and comments too, please do come all of you
Cheers

marthyan: Shukriya marthyan, aate rahiyega
Cheers

delhidreams said...

hmmm
fiza ke armaan jald hi rang layein, is dua ke sath hi kuch khwab dekhe jayein...

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...