हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है

 


हँसता-खिलता एक बीज, पौधे का रूप धर लेता है,

और उसी पौधे की गोद से, फिर एक नया बीज जन्म लेता है।


बीज से पौधा, पौधे से फिर बीज—

यही तो जीवनचक्र का शांत, अनवरत संगीत है।


ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही पहेलियों से भरी है,

हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती।


पतझड़ भी आता है अपने समय पर,

और कभी-कभी टहनियाँ वक़्त से पहले साथ छोड़ जाती हैं।


कौन किसका है यहाँ, कौन किसका नहीं —

एक ही जड़ से उगकर भी, हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है।


~ फ़िज़ा 

Comments

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 28 नवंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!
Anita said…
सुंदर सृजन
M VERMA said…
एक जड़ से उग कर अलग क्यों
वाह
Onkar said…
सुंदर रचना
बेहतरीन
Dawn said…
@Ravindra Singh Yadav ji aapka bahut bahut shukriya meri kriti ko is shrinkhala mein shamil karne ke liye, abhar!
Dawn said…
@Anita ji, @M Verma ji, @Onkar ji, @Harish Kumar ji, aap sabhi ka hridyapoorvak dhanyavaad meri rachna ko padhkar meri houslafzayee karne ka - abhar!!!

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