Thursday, July 25, 2024

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !


 

मैं तो इस पल का राही हूँ 

इस पल के बाद कहीं और !

एक मेरा वक़्त है आता जब 

जकड लेता हूँ उस पल को !

कौन केहता है ये पल मेरा नहीं 

मुझे इस पल को जानना है !

नया दौर नयी दिशा सही है मगर 

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

इस पल से इस पल के लोगों से 

मैं मिलकर राह बढ़ाना चाहता हूँ !

तुम मुझे अपना सको तो जानूँ दोस्त 

मैं हारने वालों में से तो हूँ ही नहीं !!!

~ फ़िज़ा 

5 comments:

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना,मेरे ब्लॉग पर भी आइएगा सादर

शुभा said...

वाह! बहुत खूब!

Sudha Devrani said...

बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन
वाह!!!

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

Dawn said...

Abhilasha Ji, Shubha ji, Sudha Ji evam Alok ji aap sabhi ka bahut bahut shukriya meri rachna ko padhkar use sarahane aur meri houslafzayee karne ka, dhanyawaad!

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...