Friday, May 28, 2021

मोहब्बत करने लगी हूँ


 

फिर गुस्ताखी करने चली हूँ

खुद से मोहब्बत करने लगी हूँ 


चाँद अब मेरा पीछा करता है 

उस मुये से अब मैं छिपती हूँ 


आहें भरते है दोनों तरफ आग 

डरती हूँ  और मिलना भी चाहूँ


दिल ओ दिमाग से मसरूफ हूँ 

गुनगुनाती फ़िज़ा ख्यालों में घूम हूँ 


~ फ़िज़ा 

1 comment:

PRAKRITI DARSHAN said...

बहुत खूब...खुद से बतियाती और अकेले में गुनगुनाती रचना।

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...