Sunday, October 04, 2020

ज़िन्दगी की सब से बड़ी पहेली है...!

 


ज़िन्दगी के धूप-छाँव तो आते-जाते हैं 

यही सीखा और समझा ये  ज़िन्दगी है 

वक्त का तकाज़ा या खेल ज़िन्दगी है 

समय के साथ ज़िन्दगी थक जाती है 

समय के साथ ज़िन्दगी साथ आती है

मगर कुछ ज़िन्दगी इस साल लायी है 

अंदाज़ और अंगड़ाइयों में जो नज़ारा है 

अफ़सोस अधिक, अन्धकार ज्यादा है 

समय के साथ ज़माने के बदलते तेवर हैं 

छोटा गया बड़ा पीड़ित इसमें हेर-फेर है 

ज़िन्दगी अब कोविड के हाथों चलती है 

इसके लपेट में कौन आएगा कौन नहीं है 

यही ज़िन्दगी की सब से बड़ी पहेली है 

अब तो हर खबर जो सुनने में आये है 

वो कोविड के नाम से एक षडयंत्र है 

नियति का या समय का रचा खेल है !


फ़िज़ा 

7 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

मन की वीणा said...

सामायिक चिंता।
सार्थक प्रश्न।

Dawn said...

@ मन की वीणा aapka bahut bahut shukriya aapne yahan tippani dekar apna sneha prakat kiya - dhanyavaad!

RINKI RAUT said...

Bahut Sunder

Dawn said...

@RINKI RAUT aaoka bahut bahut shukriya - dhanyavaad

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर समसामयिक सृजन।
वाह!!!

Dawn said...

@ Sudha Devrani aapka bahut bahut shukriya !

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...