कौन हैं हम कहाँ से आये हैं
क्या लेकर आये हैं साथ हम
जो आया है वो जायेगा भी
न कुछ तेरा है न ही कुछ मेरा
किस हक़ से मैं लूँ ये जगह
दिया नहीं मुझे किसी ने ये
कौन हूँ मैं तुझे हटाऊँ यहाँ से
जब ये धरती है हर किसी की
न सूरज न चाँद बांटे आसमां
न पेड़-पौधे न पशु-पक्षियां
सभी रहते मिल-जुलकर
फिर हम इंसान को क्या हुआ ?
जो अधिकार जताने लगे यहाँ
धर्म के नाम पर तो देश के नाम
कहाँ से आये कहाँ ले जाएंगे सब
इंसान कब आएगा इंसान के काम
कब वो करेगा एक दूसरे से प्यार
कब वो समझेगा अपनी सीमाएं
इंसान कब करेगा इंसान से प्यार
छोड़कर नफरत की दहशत की
फितरत ये इंसान की अहंकार की
खुद से खुदा हो जाने की ग़लतियाँ
जाग उठ कहीं बहुत देर न हो जाये
के पछताने के लिए भी न रहे समां !
~ फ़िज़ा
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