जो चाहा था ज़िन्दगी भर वो मिला नहीं
जो मिला उसी से चाहत पूरी करनी चाही
मगर वो चाहत रखनी भी ठीक लगी नहीं
सोचते रहते हैं उम्र भर क्या करें क्या नहीं
ज़िन्दगी घुमाकर ले आयी फिर उसी डगर
अब जाएं तो जाएं किधर जब वक्त नहीं
समय का पलड़ा है बहुत भारी अभी भी
वक्त है कम, गर साथ दो तो चलो कहीं
फिर से बनाते हैं चाहतों का सुरूर यूँही
चल पड़ेगी हमारी रही-सही हयात वहीँ
~ फ़िज़ा
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