ज़िन्दगी मदहोश होकर चली
बारिश की बूंदो सी गिरती हुई
कभी जल्दी तो कभी हौले से
ठंडी टपकती तो कभी गीली
रोमांचक रौंगटे से चुभती हुई
गर्म बादलों की चादर ओढकर
सिकुड़कर सोने का ख्वाब वो
कब पूरा होगा?
सुहानी वो नींद सुबह के ५ बजे
घडी की अलारम कहे, उठो!
और दिल कहे, नहीं !
हाँ और न में गुज़रे कई पल
दिल और दिमाग़ की लड़ाई में
आखिर दिमाग का जितना
जिम्मेदारी का जितना और
एक बच्चे सा दिल का हारना
कब वो जीतेगा?
इंतज़ार में... !
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Thursday, December 06, 2018
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !
गुज़रते वक़्त से सीखा है गुज़रे हुए पल, और लोग वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो एक बार समझ आ जाए उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...
-
फिर नया साल आया वोही पुराने सिलसिले मास्क टीके बूस्टर संग उम्मीदों से भरा नया साल कोशिश अब भी वही है खुश रहो, सतर्क रहो नादानी से बच...
-
जिस बात से डरती थी जिस बात से बचना चाहा उसी बात को होने का फिर एक बहाना ज़िन्दगी को मिला कोई प्यार करके प्यार देके इस कदर जीत लेता है ...
-
दशहरे के जाते ही दिवाली का इंतज़ार जाने क्यों पूनावाली छह दिनों की दिवाली एक-एक करके आयी दीयों से मिठाइयों से तो कभी रंगोलियों से नए...
No comments:
Post a Comment