Friday, January 19, 2018

मगर मैं क्या चाहूँ ये भी तो अभी पता नहीं !

नए साल की अनेक शुभकामनाएं मेरे सभी पाठकों को !
मेरे नए साल का पहला पद आज प्रस्तुत कर रही हूँ क्यूंकि ज़रा छुट्टियों के मौसम में यहाँ से भी छुट्टी ली या ऐसा कहूँ की तकनिकी सहूलियत की उपलब्धता नहीं होने की वजह से मैं अपनी कविता यहाँ पेश नहीं कर सकी!
आईये मेरी उलझी हुयी गुथी को ज़रा सुलझाइये :)


मैं ढूंढ़ती हूँ जिसे उसका पता भी नहीं 
चाहती हूँ कुछ करना पर ठिकाना नहीं 
सलाह-मश्वरा करूँ तो किससे पता नहीं 
मगर मैं क्या चाहूँ ये भी तो अभी पता नहीं !
जहाँ मैं हूँ अभी वो तो सही ठिकाना नहीं 
चाहत मेरे दिल में अभी बिलकुल भी नहीं 
ख़याल आये जगह की ख़ुशी रत्तीभर नहीं 
इतना पता है अब और नहीं बस और नहीं !
नए साल में पुरानी जगह कुछ ठीक नहीं 
नयी सोच का चलन पुरानी डगर में ठीक नहीं 
कुछ तो जुगाड़ करना है वर्ना ये सब ठीक नहीं 
कुछ करेंगे तो कुछ बनेंगे नहीं तो कुछ भी नहीं !!
सोच में डूबी हूँ के इंतज़ार अब और नहीं 
कुछ दिनों की और छुट्टी अब हकीकत नहीं 
काश! निकलती कहीं किताब लिखने मगर नहीं 
सख्त कदम उठाने पड़ेंगे,सिर्फ सोच कुछ नहीं !!!

~ फ़िज़ा 

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