कोरे कागज़ को देख
मन मचल उठा यूँही
कुछ रंगो की स्याही
छिड़क दिया उनपर
लगे अक्षर जुड़ने
बनकर एक कविता
करने लगे इशारे
झूमने लगे इरादे
बरसने लगी वर्षा
यूँही कुछ मोर
झूमने लगे नाचने
कुछ देर ही में जैसे
रास-लीला होने लगे
झूमती बहारों को देख
सोचने 'फ़िज़ा' लगी
कितने सूने से थे ये
जब कागज़ था कोरा
रंगों से परहेज़ न करो
इनके बिना जग सुना
लगे !
~ फ़िज़ा
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