धुप की किरणों में सहलाते बदन
रूह को जलता क्यों छोड़ देते हैं
इन दरख्तों से सीखो क्या कुछ ये सहते हैं !
पंछियों की चहचहाहट मानो कुछ कहती हैं
तुम समझो या न समझो गीत ज़रूर सुनाती है
कभी मुड़के देखा है कितना कुछ समझाती है!
नज़रअंदाज़ करते हो कब तक और क्यों?
हवा अपना रुख बदलती है हर वक़्त, फिर भी
समझने वाले समझते हैं देर आने तक!
बंजर ज़मीन सूखे पत्ते बंजर फर्नीचर
पुकारते हैं, सुनाते हैं एक अनसुनी कहानी
चलो उठो, अब तो संवारने की घडी आगयी!
नयी धुप नयी हवा है चिलमन में
कॉफी का प्याला हाथ में लिए
नयी डगर नए एहसास लिए निकल पड़ते हैं... !
~ फ़िज़ा
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