Sunday, August 07, 2016

हर लहर कुछ कहती है मेरे संग


बैठी हूँ सागर की लहरों के संग 
हर लहर कुछ कहती है मेरे संग
जब भी आती दे जाती है संदेसा 
फिर कुछ गुफ्तगू कर मेरे संग 
ले जाती है सारी तन्हाईयाँ 
छोड़ जाती हैं यादें मुसलसल 
कुछ और सोचूँ उस से पहले 
आ जातीं हैं सुनाने कहानियाँ 
आते-जाते लहरों से भी 
कुछ सीखा इन दिनों में 
कभी लगी वो सीधी -साधी 
कभी लगी वो गुरूर वाली 
ऐसे आती जैसे करती है राज
जाती भी तो मर्ज़ी से अपनी 
हम मुसाफिर होकर भी देख 
ललचते उसकी आज़ादी पर 
जब चाहे आती उमंग से 
बड़ी लहरों में तो कभी छोटी 
आते-जाते देती मौका सबको 
रेत पर लिखने नाम अपनों का
लिखते ही वो जान लेती   
नाम लिखा किस ज़ालिम का :)
ज़िन्दगी की किताब में फिर 
एक और नया पन्ना जोड़ने का 
दे जाती अवसर सबको लिखने 
एक कहानी और जीवन का
रखो न कोई मोह-माया 
सादगी से जियो हमेशा 
आये हो तो जाओगे भी कल 
क्या लाये जो ले जाओगे संग 
कौन काला -कौन गोरा 
सब कुछ धरा रेह जायेगा 
वैसे का वैसा !
आये थे बीज बनकर 
जाओगे ख़ाक बनकर 
जितनी है साँसों की लहरें 
जी लो ज़िन्दगी के वो पल 
किसे पता किसको पड जाये 
जाना पहले कल !?!

~ फ़िज़ा 

2 comments:

कौशल लाल said...

अच्छी प्रस्तुति....

Dawn said...

Shukriya Kaushal ji

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...