बैठी हूँ सागर की लहरों के संग
हर लहर कुछ कहती है मेरे संग
जब भी आती दे जाती है संदेसा
फिर कुछ गुफ्तगू कर मेरे संग
ले जाती है सारी तन्हाईयाँ
छोड़ जाती हैं यादें मुसलसल
कुछ और सोचूँ उस से पहले
आ जातीं हैं सुनाने कहानियाँ
आते-जाते लहरों से भी
कुछ सीखा इन दिनों में
कभी लगी वो सीधी -साधी
कभी लगी वो गुरूर वाली
ऐसे आती जैसे करती है राज
जाती भी तो मर्ज़ी से अपनी
हम मुसाफिर होकर भी देख
ललचते उसकी आज़ादी पर
जब चाहे आती उमंग से
बड़ी लहरों में तो कभी छोटी
आते-जाते देती मौका सबको
रेत पर लिखने नाम अपनों का
लिखते ही वो जान लेती
नाम लिखा किस ज़ालिम का :)
ज़िन्दगी की किताब में फिर
एक और नया पन्ना जोड़ने का
दे जाती अवसर सबको लिखने
एक कहानी और जीवन का
रखो न कोई मोह-माया
सादगी से जियो हमेशा
आये हो तो जाओगे भी कल
क्या लाये जो ले जाओगे संग
कौन काला -कौन गोरा
सब कुछ धरा रेह जायेगा
वैसे का वैसा !
आये थे बीज बनकर
जाओगे ख़ाक बनकर
जितनी है साँसों की लहरें
जी लो ज़िन्दगी के वो पल
किसे पता किसको पड जाये
जाना पहले कल !?!
~ फ़िज़ा
2 comments:
अच्छी प्रस्तुति....
Shukriya Kaushal ji
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