ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Saturday, April 25, 2015
कहाँ हम पहुंचे हैं किस ऒर जा रहे हैं और किसके वास्ते !?!
वो मकान बदलती रही घर बनाने के वास्ते
खुद को न बदल सकी मकान को घर बनाने के वास्ते।
वो इच्छा पूरी करती रही अपनी भावनाओ के वास्ते
वो न समझी सकी साथी की भावनाओ को किसी वास्ते !
वो जीतना चाहती थी घरवालो से अपने वास्ते
वो समझ न सकी उसकी हार उसी के वास्ते !
वो दिन भी आया चले मकान से महल के रास्ते
दो कमरों की दुरी से पांच की दुरी नापने के वास्ते !
सुना आज भूकंप आया नेपाल और भारत के रास्ते
कई मौत के घाट उतरे क्या महल और मकान के वास्ते !
ज़िन्दगी की सीख प्रकृति दे गयी इंसानो को जीने के वास्ते
कितना और क्या चाहिए जब पैर हो चादर के अंदर के वास्ते !
'फ़िज़ा' सोचती रही जीवन की हक़ीक़त इच्छापूर्ति लोगों के वास्ते
कहाँ हम पहुंचे हैं किस ऒर जा रहे हैं और किसके वास्ते !?!
~ फ़िज़ा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ख़ुशी
ज़िन्दगी के मायने कुछ यूँ समझ आये अपने जो भी थे सब पराये नज़र आये सफर ही में हैं और रास्ते कुछ ऐसे आये रास्ते में हर किसी को मनाना नहीं आया...

-
लोगों की भीड़ थी पार्क में जैसे कालीन बिछी ज़मीं पे एक ठेला चलाता हुआ दिखा जो भर-भर लाशें एक-एक कोशिश करता बचाने की डॉक्टर ने पुछा और क...
-
दोस्तों हाल ही में मैंने अपना एक हिंदी में पॉडकास्ट शुरू किया है. ये पॉडकास्ट मैंने एंकर अप्प के ज़रिये शुरू किया है, जहाँ मैं रोज़ नए-नए, ...
-
औरत को कौन जान पाया है? खुद औरत, औरत का न जान पायी हर किसी को ये एक देखने और छुने की वस्तु मात्र है तभी तो हर कोई उसके बाहरी ...
No comments:
Post a Comment