Saturday, January 10, 2015

खयालों में बस गया बिन बताये मेहमान.. :)


उम्र गुज़ारेंगे हम कभी यहाँ तो वहां
कभी अधूरी मुलाकाते भी होती है यहाँ

बातें चंद ही हुई हसते-मुस्कुराते जहां 
ज़िंदगी भर की निशानी ले चले यहाँ से वहां

आधी मुलाकात, अधूरी बात मगर हैरान
खयालों में बस गया बिन बताये मेहमान

ऐसा क्यूं के दूर जाकर ही समझे कोई अधूरी ज़ुबान
कैसे और कब कोई ना जाने अधूरे हुये मेहरबान

सोचे 'फ़िज़ा' इस अधूरे-आधे इज़हार-ए- सुभान
होती है पेहचान भले ही अधूरे दिल जवान

~ फ़िज़ा

2 comments:

Anonymous said...

Very nice

Dawn said...

Thank you !

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...