मगर ये ग़ुस्सा?
जाने किस किस से ग़ुस्सा है वो ? अपनों से? ज़माने से? या मुझ से? क्या मैं अपनों में नहीं आती? उसकी हंसी किसी ने चुरा ली है लाख कोशिशें भी नाकामियाब हैं उसे हर बात पे गुस्सा आता है ! अब तो और कम बोलता है वो रिवाज़ों में बंधा है सो साथ है अकेलेपन से भी घबराहट है ! इसीलिए भी शायद साथ है मगर ये ग़ुस्सा? ज़माने भर से है ! उम्मीद ही दिलासा दिलाता है इस ग़ुस्से का कोई तो इलाज हो !!! ~ फ़िज़ा
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That in your heart I will squeeze out my blood
Will do such a red like lips
That you dont remain as you and I dont remain as me
Just like the color of blood today I will mix with you
Thanks!