तेरी आँखें क्‍यों उदास रेहती हैं?

अकसर दिल में छुपी बातों का इज़हार चेहरा या फिर आँखें कर ही देतीं हैं चाहे लाख कोई उसे छुपाये
ऐसे ही एक पल को दर्शाते हुऐ कुछ कडियों को जोडने का प्रयास किया है...
उम्‍मीद है मेरे दोस्‍त इसिलाह ज़रुर करेंगे...

जब भी उनसे मुलाकात होती है
हालत-ए-दिल अजब सी होती है
चेहरा कुछ तो निगाह कुछ होती है
तबियत फिर कुछ खराब होती है
दिल से एक सवाल उठता है...
तेरी आँखें क्‍यों उदास रेहती हैं?

जब मेरे आँगन के झूले में वो
लपक के खुशी से झुमते हैं
मन ही मन में मुस्‍कुरा के फिर वो
चुप-चाप से हो जाते हैं...
दिल से एक सवाल उठता है...
तेरी आँखें क्‍यों उदास रेहती हैं?

इतनी इज़हार-ए-खुशी के बाद भी
आँखें क्‍यों सच बोलती हैं
क्‍यों नहीं छुपाया जाता फिर
दिल में पिन्‍हा जो बात होती है...
दिल से एक सवाल उठता है...
तेरी आँखें क्‍यों उदास रेहती हैं?

~ फिजा़

Comments

Keerti Vaidya said…
bhut he payari se payar bhari rachna hai...likhte rahey
Dawn said…
Aapka bahut bahut shukriya Keerti ji aate rahiyega

cheers
neelima garg said…
u write beautifully...
Dawn said…
Thank you so much Pearl

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