अक्सर,सुना जाता है -"घर की मुर्गी दाल बराबर"
कुछ ऐसी बात को दरशाने की एक कोशिश मात्र...
राय की मुँतजि़र...
दूर हम कब थे जो
पास आकर फासले बना गये
प्यार की निशानी जो
बन के कँवल खिला गये
तुमने तो हमें ही भूला दिया
उसके हँसने पर रोने, पर
जो आ जाती हैं बेचेनियॉ
कभी हमसे दूर रेहकर
हुआ करतीं थीं ये मदहोशियॉ
जब लिखी जातीं थीं कविता
तो कभी शेर की पोथियॉ
फासले को भरना ठीक समझा
प्यार की निशानी से
अनमोल मोती वो नैनन का
अपनी ही माला में पिरोकर
सँवर लेते हैं उनके लिये
कभी जब याद आयेंगे
तब पेहचान होगी हमारी
फिर मुलाकातों का सिलसिला
तो कभी चाहतों की फरमाइशें
वक्त-वक्त की बात है
हम भी थे नैनन का नगिना
~फिजा़
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
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7 comments:
सही कहा तुमने ....वक्त वक्त की बात होती है..
वो शेर है ना....
ना मोहब्बत ना दोस्ती के लिए
वक्त रुकता नहीं किसी के लिए
इसलिए.......
दिल को अपने सजा न दे यूँ ही
इस जमाने के बेरुखी के लिए
tumhare blog pe gaya tha link dhoondhne somehow shayad page poora khula nahin isliye poochna pada !
हमने क्या कभी ये सोचा था,
या ये सिर्फ नज़रों का धोखा था,
काश कि तुमने फासलों का दिल से अंदाज़ लिया होता,
बस्स एक बार जरा हमारी नज़रों से जो एहसास लिया होता,
"ना होती फिर घर कि मुर्गी दाल बराबर,
या तो तुम खुद शाही पनीर होती,
या फिर आज इस घर में बनते वोह आलू के परंठेय along with आम का achar
फिर आज हमको कम से कम ये Maggie ना नसीब होती
wahh ghar ki murgi daal barabar..
lol nice one
hmm did you listen..
Lamha lamha hum jee lenge ?
something strikes me here :)
Sahar yaar..wow thats superp..thnxs for sharing..Really Waqt-2 ki baat hai..nice work buddy.
yeah sahi kaha ....
every dog has his days :)
kharaab waqt sahi, kaDin safar aur sulagta rastaa hi sahi,
rukna bhi nahin, lauT jaanaa bhi nahin,
dasht mein tu thanhaa hi sahi...
--- Kaunquest :)
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