बहुत दिनों बाद आज कुछ लिखने का अवसर प्राप्त हुआ !
कभी वक्त ने तो कभी हालात ने इसे मनसूब होने न दिया ः)वो यादें अक्सर अच्छी और मीठीं होती हैं, जो खुशियों से भरी हुईं रही हों
और तभी तो इंसान यादों को आज भी सँजोये रखता है !
कुछ आज की तो कुछ बचपन की यादों में छिपे फर्क को मेहसूस किया है
आप की राय की मुंतजिर.....
जाने वो कैसे लोग थे
कैसा ज़माना था वो
जब लोग होली-ईद-दिवाली
सब मिलकर मनाते थे
कौन कहाँ से आया
किसने देखा, खुशियों का
एक मेला जैसा लगता था
तब मौसम भी सुहाना था
वक्त जैसे पडा रेहता
बिना किसी काम के
जिसे चाहे वो उसे
उठा लेता और समा जाता उसमें
आज कितना बदल सा गया है
सब कुछ कितना मुश्किल सा
न वक्त कहीं नज़र आता है
न मौसम पुराना सा
होली-ईद-दिवाली तो दूर
जन्मदिन भी नहीं मनाया जाता
कौन कहाँ वक्त निकाले
इन झमेलों में
आज हर कोई पूछता है
दोस्ती का हाथ बढाता है
सिर्फ कमाई-साधन के लिए
किस दोस्ती का फल व्यापार बने
आज न वक्त है
न वो लोग जिन्हें
कभी सादगी पसंद
न ही खुशियाँ
फिर भी निकल पडे हैं
ढुँढने अपने वज़ूद को
पैसों की आड में
खुशकिस्मती बनाने में
मैं सोचती रेहती हूँ
क्या ज़माना बदल गया?
या मैं ज़माने में
कुछ देर से आई !?!
जाने वो कैसे लोग थे
कैसा ज़माना था वो
जब लोग होली-ईद-दिवाली
सब मिलकर मनाते थे
~फि़ज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
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Garmi
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4 comments:
vaakay, kyaa zamaanaa thaa vo jab dil shaayaraanaa thaa meraa
Un nigaahon ke bhanvar mein aashayaana thaa meraa ;)
Very nice! Glad to see u writing poetry again. Keep writing. Apply your creativity and come up with more gems.
hey.. did u check out blogswara 2?
http://www.blogswara.in
Please do, and leave ur feedback too.
मैं सोचती रेहती हूँ
क्या ज़माना बदल गया?
या मैं ज़माने में
कुछ देर से आई !?!
---बहुत बड़ा दर्शन छिपा है, इन पंक्तियों में.
सभी तो इसका जवाब खोज रहे हैं!!
-अच्छी रचना है, बिल्कुल दिल के भावों की सुंदर बानगी.
I really liked your poem, very touching.....but have faith there is a lot we all can still do to make India a better place :)
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