Thursday, February 02, 2006

बचपन के वो पल !!!!

मेरे जीवन के वो पल....वो पल जिसे शायद ही कोंई अपनी जिंदगी से निकाल पाता हो...! हम कितनी भी लंबी डगर पर निकल पडें किंतु ईस पल से कभी पीछा नही छुटता....जी हाँ बचपन के वो पल....वो पल जिस की याद में...जिसकी सुगंध में वो खुशियों के पल होते हैं....जो ना केवल उन दिनों की याद दिलाते हैं बलकी, उन यादों से इस पल को भी मेहका जाते हैं...! सुगंध जिसकी जिंदगी में फैल जाती है....ऐक सुरयोदय की भाँति...दिन का आरंभ कर देतीं हैं परंतु....सुरयासत की तरह....वो हलकी सी लालिमा जो उदास कर जाती है...के कितने अछे थे वो पल...काश उस पल में हम लौट सकते...
जी हाँ इंसान का मन बडा चंचल होता है और इसी चंचलता के लकशण हैं कि मन नऐ नऐ अठखैलियाँ खेलता है जीने की राह ढुंढते हुऐ....निकल पढता है...ऐसे ही कुछ पल....इस कविता में पिरोने की ऐक माञ परयास........

मेरे जीवन के वो पल
याद आते हैं रेह रेह कर
वो कक्षा में जाना और
मिलकर धुम मचाना पर
मासटर जी के आते ही....
चुपके से हो जाना फुर!!!

काश ये बचपन ऐसे ही
सदा रेहतीं मेरे संग
पापा की वो पयारी दुलारी
बनकर माँ को जलाना फिर
ऐसे ही कुछ हरियाली पल
याद आते हैं रेह रेह कर!!!

अब तो सिरफ रेह गईं हैं यादें
जो हरदम खुशीयों के फुल खिलाते
साथ में दो आँसु भी लाते
जब सहेलियों के खत हैं आते
सबसे पेहले माँ को हें बताते!!!

~फिजा

2 comments:

Nagu said...

fiza sach mein bachpan ki yaadein kabhi bhulaye nahi jaa sakti.bachpan pe hame kisi bhi baat ki koi chintaa nahin hoti thi aur hum khoob masti kiya karte the.
kaash woh din phir laut aajaye.
par yeh bhi paata hain ke woh nahin ho sakta par bachpan ki yaadein sach mein apne is pal ko mehka deti hain, jo aapne apni kavita ke zariye kafi aachi tarh bataya hain.

really very nice poem on a very nice subject.
shayad meri hyderabadi hindi kafi alag ho aapki shud hindi se.

Dawn said...

नागुः मुझे बडी खुशी हुई आपकी ये टिपपणी पढकर...मेरी बातों से सहमत पाकर बेहद खुशी हुई...| आगे भी आपका साथ मिलेगा इसी उममीद के साथ....आपकी आभारी....
फिजा

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