स्त्री !
एक मात्र वस्तु की हैसियत रह गयी है
स्त्री !
जो संसार को पैदा करे अपनी कोख से
स्त्री !
जिसे संसार पुकारे करुणामयी शक्ति
स्त्री !
जो वक्त आने पर बन जाये महाकाली
स्त्री !
त्याग, सहनशील, ममतामयी, कहलाये
स्त्री !
ईश्वर जैसे महाशक्ति के बाद नाम है तो
स्त्री !
चोट लगे तब भी देखभाल पोषण करे वो
स्त्री !
मंदिरों में रख कर उसका अवतार पूजे वो है
स्त्री !
हर देशवासी कहे भारत है उसकी माँ जो है
स्त्री !
ये सब होकर भी जो है अबला यहाँ वो है
स्त्री !
मंदिरों में सजे लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, हैं ये
स्त्री !
फिर क्यों शोषित है ये सब करके भी हमारी
स्त्री !
प्रतिशोध हो इस कदर के डरे हर कोई नाम से
स्त्री !
खूबसूरत चहरे से पहले उन्हें याद आये प्रतिशोधी
स्त्री !
वो एक सवेरा कब हो यही सोचे है हर कोई आज
स्त्री !
क्या इतनी बुरी है जो वेदना से पीड़ित हो हमेशा
स्त्री ?
सोच-सोच कर बुद्धि भ्रष्ट है कोई सूझे न उपाय
स्त्री !
क्यों तू अब भी है अबला नारी क्यों नहीं है महाकाली
स्त्री !
शब्द नहीं मेरे पास और मेरे साथी मेरे कबीलेवासी
स्त्री !
निसहाय , निर्बल , डरपोक, कमज़ोर, नाज़ुक है
स्त्री !
~ फ़िज़ा
Comments
Anita ji, 100% sahi..jaungle raj he to chal raha hai.. afsos!!! Aapka bahut bahut shukriya and dhanyavaad!
Alok Sinha ji, aapka bahut bahut shukriya houslafzayi ka, aabhaar, dhanyavaad!!!
क्या इतनी बुरी है जो वेदना से पीड़ित हो हमेशा
स्त्री ?
..."
अफसोस पर सच। पर हम इसे ठीक करेंगे। विश्वास।
Harish Kumar ji, aapka bahut bahut shukriya , abhaar!