तपते हैं धुप में तपते ज़मीन को जोतते हैं
मेहनत जीजान से करके सोना उगलते हैं
धुप-छांव हो बरसात फसल प्यार से उगाते हैं
अपना पेट भरने से पेहले औरों का पेट भरते हैं
सदियों से तो यही है पेशा किसान का जो हैं
बैल-ट्रेक्टर या खुद ही हल-जोतना बीज बोना
काम लगन से करना अपने देश का पेट है भरना
मिटटी से नाता रखने वाले ज़मीन से जुड़े हुए हैं
इसीलिए हर किसी का पेट भरने के बाद भी
किसान खुद भूखा है अनाज से अपने हक्क से
सरकारें आयीं और गए भी हैं गद्दी से कई यूँ भी
देशवासियों की विकास और तरक्की के बहाने
ये वही देश हैं जहाँ नारे लगे थे स्वतंत्र भारत में
'जय जवान जय किसान' वही आज लड़ रहे हैं
कब किसान होगा आज़ाद इन सभी बंधनों से
जहाँ उसे उसका हक़ मिलेगा वो जियेगा चेन से
एक निवाला जब रोटी का डालो अपने मुँह में
ज़रूर याद करना जिसने काटे फसल धान्य के
देश का किसान जब भूखा होगा दुखी होगा ऐसे
तो उस अन्न का क्या हर्ष होगा जो खाएं गर्व से
विभिन्नता में एकता इसी में है सबकी सद्भावना
रहो संग किसानों के यही है मेरे दिल का नारा
~ फ़िज़ा
7 comments:
सरकारें आयीं और गए भी हैं गद्दी से कई यूँ भी
देशवासियों की विकास और तरक्की के बहाने
सार्थक कविता
यही तो विडंबना है हमारे देश में कि सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन किसानों की समस्या कभी समाप्त नहीं की जाती। उन पर किसी की नजर नहीं जाती।
बहुत दुखद है यह।
सादर।
सुन्दर सृजन
बहुत सुंदर।
सुन्दर रचना - - नमन सह।
सामायिक विषय पर सार्थक चिंतन देती रचना।
सुंदर।
प्रभावी प्रस्तुति ।
@सधु चन्द्र : Aapka bahut bahut shukriya stithi ki geharayi ko samajhne ka! Sadar!
@अनीता सैनी : Aapka bahut bahut shukriya meri is smaran ko apni shrinkhala mein shamil karne ka! Sadar!
@सुशील कुमार जोशी : Dhanyavaad, sadar!
@Jyoti Dehliwal : Dhanyavaad, sader!
@Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल : Dhanyavaad, sadar
@मन की वीणा : Bahut shukriya aapka , sadar!
@Amrita Tanmay : Dhanyavaad, sadar
Post a Comment