Tuesday, August 11, 2020

सेहर होने का वादा...!



शाम जो ढलते हुए ग़म की चादर ओढ़ती है 
वहीं सेहर होने का वादा भी वोही करती है 

आज ये दिन कई करीबियों को ले डूबा है 
दुःख हुआ बहुत गुज़रते वक़्त का एहसास है 

दिन अच्छा गुज़रे या बुरा साँझ सब ले जाती है 
ख़ुशी-ग़म साथ हों हमेशा ये भी ज़रूरी नहीं है 

सेहर क्या लाये कल नया जैसे आज हुआ है 
एक पल दुआ तो अगले पल श्रद्धांजलि दी है 

इस शाम के ढलते दुःख के एहसास ढलते हैं 
राहत को विदा कर 'फ़िज़ा' दिल में संजोती हैं 

~ फ़िज़ा 

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 13 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

वाह बहुत खूब।

Dawn said...


@yashoda Agarwal: मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में, स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया.
आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@सुशील कुमार जोशी ..आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
हार्दिक आभार !

Derek Dawson said...

Great post thanks for sharing it.

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...