ऐ चाँद, दिलबर मेरे हमनशीं

चित्र अशांक सींग के सौजन्य से
चाँद की अठखेलियां देख 
आज कविहृदय जाग गया
उसकी चंचल अदाओं से 
मेरा दिल घायल हो गया 
अपना पूर्ण मुख प्रतिष्ठा 
और हलकी सी मुस्कान से 
घायल को ही बेहाल किया 
न चैन से सोने दिया रात भर 
न चैन से जगने दिया दिन में 
कामदेव की सूरत में चाँद 
प्यार में रत रहे फ़िज़ा संग 
हर वक़्त एक वासना सी 
सम्भोग का वो आलम जैसे 
हर ख़ुशी दर्शाये रंग से ऐसे 
मानो कभी परदे में छिपके 
तो अँधेरे की आड़ में ऐसे 
एक-दूसरे को समर्पण ऐसे 
तृप्ति मिली आलिंगन भर से 
सदियों से सताए रखा दूर से 
उस रात की रासलीला ने 
उम्मीद जगा दिया अब से 
हो न हो तुम हो उस जहाँ में 
इंतज़ार करूंगी इस जहाँ में 
अब तो मिलन है ज़रूरी 
आशा जिज्ञासा बढ़ गयी है 
ऐ चाँद, दिलबर मेरे हमनशीं 
तू मिलने आ इस चमन में 
तख्ती है राह तेरी फ़िज़ा 
फिर एक रात दोनों जवाँ 
बसेरा हो एक रात का 
जीवनभर का रहे फिर नाता !

~ फ़िज़ा 

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