चेहरा खिला गुलाब सा
आँखें पुरनम सी हरदम
उसकी हँसी में वो बांकपन
उसकी खिलखिलाती हंसी
सिर्फ एक ज़िन्दगी की आस
एक वो लम्हा हंस के मर जाने की
तो जी उठने की वो लालसा फिर से
दुनिया जीती थी उसकी इस अदा पे
वो जो किसी को जीना सीखा दे
उसका भी एक अक्स था छिपा सा
जो शायद कोई देख न पाया
या जीने की आस में सोच नहीं पाया ?
खिले चेहरे के पीछे एक हकीकत थी
उसकी आँखों में हमेशा एक नमीं थी
उसकी हंसी के पीछे एक राज़ था
उसकी खिलखिलाहट में दर्द था
जो सिर्फ जूझ रही थी जीने के लिए
वो जो पल में जीकर मरजाने के लिए
हतेली पर लिए ज़िन्दगी चली थी कभी
आज भी है उसकी वही लड़ाई ज़ारी
कर औरों को बुलंद इसी में रह गयी
सोच न सकी कभी अपनी भलाई
एक चेहरा ऐसा भी था भीड़ में
जो कभी नहीं मुरझाई !
~ फ़िज़ा
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