ज़िन्दगी है तो हैं ज़िंदा वर्ना क्या है?


ज़िन्दगी से जब कुछ भी नहीं थी उम्मीद 
तब हज़ारों मुश्किलें भी लगती थीं कमज़ोर 
ज़िन्दगी को जीना आगया था तब उलझनों से 
मौत या दुःख-दर्द का पता भी नहीं था कोई नाम 
अकेले आना है और अकेले जाना है समझ आता था 
पर आज जब ज़िन्दगी ने हाथ फैलाया है साथ का 
जाने कितने उम्मीदों के साथ हौसलों का पर्दा पहनाया है 
इन्हीं हौसलों को पाने की चाहत ने बना दिया सबको मुर्गा 
एक लंबी होड़ है ज़िन्दगी की दौड़ में जहाँ हार भी है 
जीत तो हमेशा नहीं न होती साथ, बेवफा 
वहीं टूट जाती है उम्मीद की सांस 
हौसलों के बादल गरजकर नहीं बरसते 
बरसता है आँखों से पानी, जब याद आता है 
ज़िन्दगी से मैं क्या-क्या न कर बैठा उम्मीद?
सोच में निकाले वक़्त अब वो हर लम्हा 
जो शायद कभी बिताये खुशियों में 
क्योंकि ज़िन्दगी है तो हैं ज़िंदा वर्ना 
क्या है?

~ फ़िज़ा 

Comments

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !