Tuesday, February 09, 2010

मैं

ज़िन्दगी में कभी ऐसे मौके आये हैं जहाँ आप इस कदर खुदगर्ज़ हो जाते हैं के आपको सिर्फ अपनी फिकर होती है के में कैसे जियूँगा और में कैसे अपने आपको किसी भी हालात से बहार निकालूँगा जहाँ मुझे किसी पर भी निर्भर रहना न पड़े ...ऐसे चंद मौकों, लम्हों जहां "मैं" का महत्व दर्शाने की एकमात्र कोशिश...
मैं !!!
मैं चाहता हूँ , दिल से तुझे
मैं बहलाता हूँ , दिल से तेरे
मैं प्यार चाहता हूँ , दिल से तेरे
मैं चाहता हूँ , तू भी प्यार करे
मैं चाहता हूँ , तू भी बहले मुझ से
मैं चाहता हूँ , गर तू न आये मेरे पास
में चाहता हूँ , भूल जाऊं में तुझे
तुझ से पहले, में जीत जाऊं इसमें
मैं चाहता हूँ , तकलीफ कम हो मुझे
जब में निकल जाऊं , सुकून से
इस प्यार के झमेले से
तब तुम चली जाना ज़िन्दगी से
न कभी फिर सहारे की जुस्तजू तुमसे
मैं चाहता हूँ , ये दिल से
के तू हमेशा चाहते रहे ,
लेकिन में निकल जाऊं इसमें से
मैं चाहता हूँ , दिल से तुझे
मैं बहलाता हूँ , दिल से तेरे
~ फिजा

1 comment:

Jyoti said...

lovely!

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...