सहानुभूति के अल्फ़ाज़
ज़िन्दगी के चंद हसीन पल ज़िन्दगी बनाने में सफल हैं
वर्ना यहाँ आये दिन तीखे शब्दों के बाण कम नहीं !
शुक्र है चंद ऐसे भी हैं जो न जानते हुए भी समझते हैं
वर्ना हर कोई अपनी अपेक्षाओं की थाली परोसे हैं !
कहाँ मिलते हैं लोग जो मैं को छोड़कर आप में बसे
यहाँ तो हर कोई खुदी में खुदा बना नज़र आता है !
जग से हर किसी को उठना है एक न एक दिन फ़िज़ा
यहाँ इंसान एक दूसरे की नज़रों से ही उठा जा रहा है !
रेहम! दोस्तों ऐसे भी हैं जो अंदर ही अंदर कूटते हैं
कुछ सहानुभूति के अल्फ़ाज़ नहीं तो इशारा ही दे दें !
~ फ़िज़ा
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