प्रकृति का नियम

शाक से टूट गिरी ज़मीन पर सब नया डगर अनजान मगर दुनिया देखने का ये अवसर मिलता नहीं शाक से जुड़कर ! सूखे पत्तों के ढेर में और भी थे जो अनजान सही लगे अपने थे खुली आँखों से हकीकत देखा जीना असल में तभी तो सीखा ! प्रकृति का तो नियम स्वंतंत्र है जकड़े हैं सामाजिक मानदंड से आडम्बर और खोकली दुनिया में तभी तो हम इंसान कहलाये हैं ! ज़िन्दगी की बागडोर अलग है परिचित हैं मगर जाना अलग है हर कोई अपने में भी अलग है विभिन्नता को एक सा क्यों देखें? ~ फ़िज़ा