आज कुछ अजब सा देखा
  आज कुछ अजब सा देखा  बात तो दोनों की सही थी  दोनों ही अपने पेट वास्ते  जीवन का नियम संभाले  एक तो बिल से निकला  दूजा पेड़ से उड़कर आया  निकले दोनों पेट की खातिर  बस एक ही भरपेट खाया  जीवन का भी खेल देखो  किसका अंत व शुरुवात  जो भोजन बना वो नादान  जिसने खाया वो भी नादाँ  प्रकृति के कटघरे में सही  मगर अपने दिल से पूछूं  तब भी सही लगा मगर  जाने वालों का अफ़सोस  तो ज़रूर होता है मन को  ऐसा ही कुछ हुआ हम को  जब से देखा हादसे को  ! ~ फ़िज़ा