मुझे नहीं परवाह कोई है या नहीं
खुद ही हूँ मेरा क़ातिल खबर है मुझे
कमज़ोर हाथों से दिया है सहारा
ये बात और के वो भूल जाएँ उसे
जोड़ने की व्यथा में टूट जाते हैं सब
बिखरे ही रहने दो इन्हें क्योंकि ये
उम्मीद तो देते हैं किसी से जुड़ने की
क्या तेरा और मेरा इस मायानगरी में
जैसे आया है वैसे जायेगा बिना बताये
इंसान हैं तो निभाले इंसानियत सभी से
अफ़सोस भले काम न आये फिर कभी
आज़ाद कर खुद को सभी से 'फ़िज़ा'
कम से कम गिला तो नहीं किसी वास्ते!
~ फ़िज़ा
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