आज यूँ ही बहुत देर तक सोचती रही
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ !
कितनी बेड़ियां हैं
पैरों पर कर्त्तव्य के
तो हाथ बंधे हैं
उत्तरदायित्व में
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां !
पूछते सभी हरदम
क्या करना चाहोगी
गर मिला जो मौका
सोचने से भी घबराऊँ
क्यूंकि दाना-पानी
खाना -पीना जीवन की कहानी
फिर दिल की रजामंदी
कैसे होगी पूरी
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहाँ जरूरतों में
बाँटू प्यार -मोहब्बत
दूँ मैं औरों को हौसला
दो निवाला मैं भी खाऊँ
दो उनको भी दे सकूं
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
~ फ़िज़ा
3 comments:
अक्सर यही खयाल मुझे भी झंझोढता है कि-
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ... दिल को छू गयी आपकी कविता
अक्सर यही खयाल मुझे भी झंझोढता है कि-
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ... दिल को छू गयी आपकी कविता
Shukriya kavita padhne aur apni tippani yahan mere sang baant ne ke liye :)
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