Thursday, November 07, 2024

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !


 

गुज़रते वक़्त से सीखा है 

गुज़रे हुए पल, और लोग 

वो फिर नहीं आते !


मतलबी या खुदगर्ज़ी हो 

एक बार समझ आ जाए 

उनका साथ फिर नहीं देते !


पास न हों पर अच्छे हों 

बात रोज़ न हों पर सच्चे हों 

ऐसों को हमेशा साथ रखें !


हर कोई जूझ रहा ज़िन्दगी में 

टेढ़े मुह बात भी करे तुमसे

सहानुभूति रखें सभी से !


ज़िन्दगी सिर्फ चार पल की 

अहंकार में खोना न सच्चे रिश्ते 

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !


~ फ़िज़ा 

Sunday, November 03, 2024

सुना है इलेक्शन बस एक खेल है !!

 


हर तरफ एक खौफ सा माहौल है 

सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है 

अब तक इतनी उत्तेजना नहीं थी कभी 

फिर आज-कल में क्या होगया ऐसा ?

सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है !


पेहले ये नहीं तो वो पार्टी जीतेगी बस 

सब कुछ तो अच्छा ही चल रहा है 

एक साल इसे तो दूजे में उसका राज 

माहौल तो वोही है जैसे थे वैसे हैं 

सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है !


ये खौफ क्यों? इलेक्शन ही तो है 

किसी ने कहा इस डर की वजह 

यहां की जनता ही है जिसने चुना 

ट्रम्प, निठल्ला नफरत फैलाने वाला  

सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है !


डरना तो पड़ेगा अपने हक़ की बात है 

किसी बन्दर के हाथ में तलवार देकर  

राजा भी खुद की नाक न बचा पाया 

डरना क्या, वोट दो जनहित के लिए 

कमला को लाओ इलेक्शन तो खेल है !

सुना है इलेक्शन बस एक खेल है !!


~ फ़िज़ा 


Friday, October 25, 2024

अम्मा का प्यार


दुःख क्यों होता है ये ऑंसूं क्यों नहीं रुकते 

२००५ में मिली थी तुमसे न सोचा कभी 

इस कदर स्नेह भर दोगी अपने वास्ते !


पहली मुलाकात और ढेर सारा प्यार 

जहाँ भी जाती संग ले जाती हर जगह 

अपनायियत और स्नेह से बांध लिया !


भेदभाव न किया बेटी और बहु में 

जो भी दिया इज्जत और प्यार से 

मुझ ही से मुझे छीन लिया इस कदर !


आज दिल रो रहा है यादों में समेटे हुए 

कुछ मोहलत और मिल जाती हमें 

कुछ और लम्हे बिता पाते संग तुम्हारे !


ढूंढ रहे हैं तस्वीरों में अब भी तुम्हें 

आंसू मगर क्यों नहीं थमते मेरे 

तुम्हारे चुटकुलों को सोच बहते हैं आँसू मेरे !


इस कदर छाप छोड़ गए हो दिल पर 

तुम सा बनने की कोशिश करेंगे ज़रूर 

जाते हुए भी प्यार की सीख दे गयी !


~ फ़िज़ा 

 

Saturday, August 24, 2024

खुदगर्ज़ मन

 



आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है 

अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है 

फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


कुछ करने का हौसला बड़ा जगा रहा है 

जीवन का नया पन्ना खोलने को कह रहा है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


समझा रहा है बेड़ियाँ तो सब को हैं मगर 

बेड़ियों की फ़िक्र क्यों जीने से रोके मगर 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


पंछी सा है मन रहता है इंसानी शरीर में 

कैसा ताल-मेल है ये उड़ चलने को केहता है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


घूमना चाहता है दुनिया सारी बेफिक्र होके 

जाना सभी ने अलग-अलग फिर क्या रोके?

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


मोह-माया के जाल में न धसना केहता है 

जाना ही है तो मन की इच्छा पूरी करता जा 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


तू अपनी मर्ज़ी की करता जा खुश रह जा 

दुनिया कहाँ सोचेगी जो तू दुनिया की सोचे है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


अब मैंने भी मन से मन जोड़ लिया है 

खुश, आज़ाद रेहने का फैसला कर लिया है 

आजकल मन ही नहीं मैं भी खुदगर्ज़ हो चला हूँ !!


~ फ़िज़ा 


Monday, August 19, 2024

स्त्री !


 

एक मात्र वस्तु की हैसियत रह गयी है 

स्त्री !

जो संसार को पैदा करे अपनी कोख से 

स्त्री !

जिसे संसार पुकारे करुणामयी शक्ति 

स्त्री !

जो वक्त आने पर बन जाये महाकाली 

स्त्री !

त्याग, सहनशील, ममतामयी, कहलाये 

स्त्री !

ईश्वर जैसे महाशक्ति के बाद नाम है तो 

स्त्री !

चोट लगे तब भी देखभाल पोषण करे वो 

स्त्री !

मंदिरों में रख कर उसका अवतार पूजे वो है 

स्त्री !

हर देशवासी कहे भारत है उसकी माँ जो है 

स्त्री !

ये सब होकर भी जो है अबला यहाँ वो है 

स्त्री !

मंदिरों में सजे लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, हैं ये 

स्त्री !

फिर क्यों शोषित है ये सब करके भी हमारी  

स्त्री !

प्रतिशोध हो इस कदर के डरे हर कोई नाम से 

स्त्री !

खूबसूरत चहरे से पहले उन्हें याद आये प्रतिशोधी 

स्त्री !

वो एक सवेरा कब हो यही सोचे है हर कोई आज 

स्त्री !

क्या इतनी बुरी है जो वेदना से पीड़ित हो हमेशा 

स्त्री ?

सोच-सोच कर बुद्धि भ्रष्ट है कोई सूझे न उपाय 

स्त्री !

क्यों तू अब भी है अबला नारी क्यों नहीं है महाकाली 

स्त्री !

शब्द नहीं मेरे पास और मेरे साथी मेरे कबीलेवासी 

स्त्री !

निसहाय , निर्बल , डरपोक, कमज़ोर, नाज़ुक है 

स्त्री !

~ फ़िज़ा  

Thursday, July 25, 2024

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !


 

मैं तो इस पल का राही हूँ 

इस पल के बाद कहीं और !

एक मेरा वक़्त है आता जब 

जकड लेता हूँ उस पल को !

कौन केहता है ये पल मेरा नहीं 

मुझे इस पल को जानना है !

नया दौर नयी दिशा सही है मगर 

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

इस पल से इस पल के लोगों से 

मैं मिलकर राह बढ़ाना चाहता हूँ !

तुम मुझे अपना सको तो जानूँ दोस्त 

मैं हारने वालों में से तो हूँ ही नहीं !!!

~ फ़िज़ा 

Thursday, July 04, 2024

इंसान


 

ज़िन्दगी कभी तृप्त लगती है 

लगता है निकल जाना चाहिए 

कहते हैं न जब सुर बना रहे 

तभी गाना गाना बंद करना 

ताके यादें अच्छी रहे हमेशा !


ज़िन्दगी कभी बेकार सी लगती है 

लगता है निकल ही जाना चाहिए 

किसी को किसी की ज़रुरत नहीं 

जीने की अब कोई इच्छा भी नहीं 

निकल गए तो सब खुश तो होंगे

चलो अच्छा था अब चला गया !


क्यों सोचता है इंसान ऐसा ?

जो न ग़म, ख़ुशी में समझे फर्क 

और एग्जिट की ही सोचे हर वक़्त 

क्यों उस किनारे की तलाश करे 

जो समंदर के उस पार सी हो 

दिखाई न दे क्षितिजहिन दिशाहीन !!


~ फ़िज़ा 


अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...