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हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है

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  हँसता-खिलता एक बीज, पौधे का रूप धर लेता है, और उसी पौधे की गोद से, फिर एक नया बीज जन्म लेता है। बीज से पौधा, पौधे से फिर बीज— यही तो जीवनचक्र का शांत, अनवरत संगीत है। ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही पहेलियों से भरी है, हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती। पतझड़ भी आता है अपने समय पर, और कभी-कभी टहनियाँ वक़्त से पहले साथ छोड़ जाती हैं। कौन किसका है यहाँ, कौन किसका नहीं — एक ही जड़ से उगकर भी, हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है। ~ फ़िज़ा