अभी रात ठेहर जाओ !!
ठण्ड ने कुछ यूँ पास सबको जकड रखा है कम्बलों से जन्मों का नाता बना रखा है कुछ इस कदर रिश्ता बना है सर्दियों में ख्यालों में ऊन का मेला नज़र आता हैं करीब रेहकर कम्बलों में नज़र आता है उसका स्पर्श गरम बाहों का आसरा है ख़याल से गुद -गुदाहट, सुखद अनुभव है चाँद, दीवाना आज कुछ ठान के आया है चांदनी रात उसका साथ, फिर ये ठण्ड है आँखों के सिलसिले कहानियों के ज़रिये है अयनांत की रात पिया से मिलने जाना है फ़ज़ाओं थोड़ा थम जाओ, सेहर तुम जाओ अभी रात ठेहर जाओ !! ~ फ़िज़ा