Friday, July 31, 2015

इजहार-ए -मुहब्बत यूँ भी करना ...!



मेरा दिल दर्द से तू भर दे इतना 
के जी न सकूँ चेन से न मरना 
लफ़्ज़ों के खंजर से खलिश इतना 
के जी न सकूँ चेन से न मरना 
इजहार-ए -मुहब्बत यूँ भी करना 
के जी न सकूँ चेन से न मरना 
दुआएं यूँ देना के बरसों है जीना 
मगर ऐसा भी,
के जी न सकूँ चेन से न मरना 

~ फ़िज़ा 

Friday, July 10, 2015

बहुत सालों बाद बचपन लौट आया था


बहुत सालों बाद बचपन लौट आया था 
किसी से इतने पास होने का एहसास अब हुआ था 
जाने कैसे बिताये इतने साल ये अंजाना था 
कुछ देर के लिए मानो भूल गया वक़्त हमारा था 
लगा हम लौट आये स्कूल की कक्षा में फिर 
उसी बेंच पर बैठकर बातें कर रहे थे कुछ देर 
भेद-भाव न था आज फिर भी मिलन पुराना था 
मानो जैसे पानी और दूध का मिलन था 
मिलने की देरी थी फिर जुदा न हो पाना था 
लौट आये हैं अपने घरोंदों में अब लेकिन 
एक बड़ा हिस्सा छोड़ आये उन्हीं गलियों में 
जहाँ हम सब पले -बढे और खेले थे !!!

~ फ़िज़ा 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...