Wednesday, December 21, 2016

खुश हूँ! चंद दोस्त हैं अब रह गए इस तरह...!!!


मैं देखती हूँ इन नज़ारों को कुछ इस तरह 
मानो मुंह दिखाई का रस्म हो जिस तरह 
हर चीज़, जगह बदल चुकी है इस तरह 
मानों जैसे मौसम बदलता हो किसी तरह 
हर सेहर और पहर घूरतीं हैं मुझे इस तरह 
मानों अजनबी हूँ इस शहर में किसी तरह !!
खुश हूँ! चंद दोस्त हैं अब रह गए इस तरह 
याद दिलातें हैं बचपन के खुशबु की तरह
मस्ती और उनकी हस्ती सुनहरी धुप की तरह
वो अब भी नहीं बदले गुज़रे वक़्र्त की तरह   
हँसी की कल-कल बहती जल की धारा
यही महसूस होता है ज़िंदा हैं हम इस तरह !!   

~ फ़िज़ा 

Saturday, December 03, 2016

आज़ाद कर खुद को सभी से 'फ़िज़ा' ...


मुझे नहीं परवाह कोई है या नहीं 
खुद ही हूँ मेरा क़ातिल खबर है मुझे  
कमज़ोर हाथों से दिया है सहारा 
ये बात और के वो भूल जाएँ उसे 
जोड़ने की व्यथा में टूट जाते हैं सब 
बिखरे ही रहने दो इन्हें क्योंकि ये 
उम्मीद तो देते हैं किसी से जुड़ने की 
क्या तेरा और मेरा इस मायानगरी में 
जैसे आया है वैसे जायेगा बिना बताये 
इंसान हैं तो निभाले इंसानियत सभी से 
अफ़सोस भले काम न आये फिर कभी 
आज़ाद कर खुद को सभी से 'फ़िज़ा'
कम से कम गिला तो नहीं किसी वास्ते!

~ फ़िज़ा 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...