Friday, August 19, 2022

कोवीड इस अचूक से आ मिला !




 सकारात्मक  होना क्या इतना बुरा है ?

के कोवीड भी इस अचूक से आ मिला 

जैसे ही हल्ला हुआ के मेहमान आये है 

नयी दुल्हन की तरह कमरे में बंद हो गये 

स्वर्णयुग से नहीं थे जो छुईमुई बन जाते 

काम-सपाटा ऑफिस का खत्म कर जल्दी 

चले निद्रा को पकड़ने 

या हो गए उसके हवाले 

जो भी था 

फिर तांडव रचा कोवीड ने अंदर 

घुसा तो कहीं से भी हो मगर

स्वयं स्थिर हुआ 

राज रचा मस्तिष्क पर जैसे कोई प्रयोगशाला 

जो भी हो रहा था 

सब कुछ नज़र आ रहा था 

जाने क्यों सपना हकीकत 

नज़र आ रहा था 

मृत्यु , 

मरना सिर्फ इस लोक के लिए है 

वहां तो ये एक दरवाज़ा है 

जहाँ से निकले 

तो फिर मैं न मैं रहूं 

और

मैं भी न जानू मैं कौन हूँ ?

~ फ़िज़ा  

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कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...