Friday, August 14, 2020

आज़ादी की मुबारकबाद !




स्वतंत्रता के ७३ वर्षों के बावजूद मन अशांत है 
क्यों लगता है के पहले से भी अधिक बंधी हैं
विचारों से मन-मस्तिष्क से अभिप्राय से बंधे हैं 
जब लड़े थे आज़ादी के लिए एक जुट होकर 
हर किसी के लिए चाहते थे मिले आज़ादी 
उन्हें न सही उनकी आनेवाली नस्ल को सही 
एक इंसानियत का जस्बा था जो हमें दे गयी 
स्वंत्रता अंग्रेज़ों से उनके अत्याचारों से मुक्ति 
मगर फिर आपस में ही लड़ते रहे आजीवन 
स्वार्थ और खोखली राजनीती और गुंडागर्दी 
कैसे कहें स्वंतंत्रादिवस की शुभकामनाएं जब 
आज भी हम आधीन हैं ईर्षा और नफरत के 
देश रह गया पीछे मगर सब हैं जीतने आगे 
धीरे-धीरे आनेवाला कल भी भूल जायेगा 
आज़ादी का संघर्ष और मूल्य शहीदों का 
एक ख्वाब तब था और एक अब भी है 
चाहे पाक हो या हिंदुस्तान दोनों को है 
आज़ादी की मुबारकबाद !

~ फ़िज़ा 

Tuesday, August 11, 2020

सेहर होने का वादा...!



शाम जो ढलते हुए ग़म की चादर ओढ़ती है 
वहीं सेहर होने का वादा भी वोही करती है 

आज ये दिन कई करीबियों को ले डूबा है 
दुःख हुआ बहुत गुज़रते वक़्त का एहसास है 

दिन अच्छा गुज़रे या बुरा साँझ सब ले जाती है 
ख़ुशी-ग़म साथ हों हमेशा ये भी ज़रूरी नहीं है 

सेहर क्या लाये कल नया जैसे आज हुआ है 
एक पल दुआ तो अगले पल श्रद्धांजलि दी है 

इस शाम के ढलते दुःख के एहसास ढलते हैं 
राहत को विदा कर 'फ़िज़ा' दिल में संजोती हैं 

~ फ़िज़ा 

Saturday, August 08, 2020

उम्मीदों से भरा...




महीना अगस्त का मानों उम्मीदों से भरा 
शिकस्त चाहे उस या फिर इस पार ज़रा  
वैसे भी कलियों के आने से खुश है गुलदान 
फूल खिले न न खिले उम्मीद रहती है बनी 
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से 
लड़कर भी वृक्ष नहीं हटते अपनी जड़ों से 
कली को देख उम्मीद तो है गुलाब का रंग 
खिलकर बदल जाए तो क्या उम्मीद तो है 
कम से कम !

~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...