Thursday, November 22, 2018

अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं


ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नहीं
फिर भी इंसान शुक्रगुज़ार नहीं
जीना गर तुम्हारी फितरत में नहीं
किसी और की ज़िन्दगी बर्बाद भी नहीं
खुदगर्ज़ और खुदफहमी में रहना नहीं
साथ रहनेवालों को बेचैन, ज़िन्दगी नहीं
बहुत हुआ नेकी करनी सोचा अभी नहीं
वो वक्त गुज़रकर जाना यहाँ से दूर नहीं
अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं
उस दिन की आस ज़रूर है जब हम नहीं !
~ फ़िज़ा

Sunday, November 11, 2018

ये ज़िन्दगी की भी क्या अजीब किताब है...!






ये ज़िन्दगी की भी क्या अजीब किताब है
हर साफा किसी न किसी से जूझता हुआ !

कोई इश्क़ में डूबा हुआ तो कोई मारा हुआ
कभी इश्क़ से मांगता हुआ तो लड़ता हुआ !

जीने के लिए लड़ता हुआ तो ललचाता हुआ
जीने के वजह से मरता हुआ तो मारता हुआ !

कोई जीने के लिए बन्दूक लेता तो कोई खाता
बारूद की बरसातें तो तेज़ाब के छींटों से भरा !

दो घडी की दीवानगी बरसों का झमेला हुआ
जो भी किया चंद सुकून परस्ती के लिए हुआ !

जाने ज़िन्दगी को जीता कहें या सेहता हुआ
हर सांस जीने  के लिए मरता-जूंझता हुआ !

ज़िन्दगी भी अजीब सी किताब है 'फ़िज़ा '
हर साफा बहादुरी से मरता हुआ  लगे !!

~ फ़िज़ा

Sunday, November 04, 2018

लिखकर ये चंद पंक्तियाँ एहसास जागे नए



ज़िन्दगी से बात हुई कुछ दिन हुए
काम में कुछ ज्यादा ही मसरूफ हुए
दुनिया की परेशानी मानो अपने हुए
ज़िन्दगी करीब होकर भी न रूबरू हुए
खुद को सम्भालो तो औरों की सोचिये
औरों का साथ कैसे दोगे जब अपने न हुए
लिखकर ये चंद पंक्तियाँ एहसास जागे नए
चलो ये एहसास ही ज़िन्दगी के पास लाए !

~ फ़िज़ा 


करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...