Saturday, February 17, 2007

एक नया बीज़ बन के कोई अरमान

अक्‍सर इंसान ख्‍वाब देखता है किंतु उसे पूरा होते देखने में कई बार वो आडंबरी
रस्‍मों में फँस जाता है क्‍योंकि वो भी आखिर इन्‍हीं गुँथियों में गुँथ जाता है
बहुत दिनों बाद पेश है ....राय की मुंतजि़र



दिल की धडकन आज फिर हूई है जवान

के तरंगों का कारवाँ हुआ हैवान

सुखी बँज़र ज़मीन पर आज फिर

एक नया बीज़ बन के कोई अरमान

आँखों से तो ले ही गया नींद

दे गया हजा़रों सपने जवान

कल जब कहा था छू कर के मेरा हाथ

दिल भी और जान भी रेह गये हैरान

इंतजा़र मे़ है 'फिजा़' ये दिल अब तो

के कब रस्‍मों से हों रिश्‍ते बयान


फिजा़

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...