Thursday, December 31, 2020

ज़िंदा हो इसीलिए नया साल मुबारक ही समझना

 


हर साल आता है साल नया 

हर पुराने साल को करने विदा 

हर गुज़रे साल से सीखते नया 

मगर होता तो नहीं कुछ भी नया 

ये साल बहुत कुछ हमें सीखा गया 

क्या चाहिए और कितना बता गया 

रोज़ मिले या न मिलें हम दोस्तों से 

दिखा दिया कौन अपना और पराया 

पैसों की ज़रुरत कम इंसान काम आया 

घर की दाल-रोटी आम का अचार भला  

स्वस्थ और स्वादिष्ट खाना सीखा गया 

ज़रुरत तो वैसे कुछ भी नहीं जीने के लिए 

वक्त ने इंसान को फिर किसान बना दिया 

बगीचों में टमाटर धन्या अब उगने लगा 

रोज़ परिवार संग बैठकर योजना बनाने लगा 

छोटे से बड़ा घर का उत्तरदायी होने लगा 

कंपनियों को समझ आने लगा निष्ठावान का 

घर से हो या बगीचे से काम तो होने लगा 

वक्त के साथ स्वस्थ्य पर निगरानी रखने लगा 

इंसान आखिर इंसान पर भरोसा करने लगा 

ज़िन्दगी देता इंसान तो वही लेता भी जान 

मास्क न पहन गैर जिम्मेदार पार्टियां करने लगा 

अपना न सही मगर औरों को खतरे में डालने लगा 

बात भी सही है अब तो वज़न कम करो अपना 

कुछ न कुछ करो पृथ्वी पर न बनों बोझ इतना 

ज़िन्दगी में पाने के लिए खोना भी पड़ता है उतना 

फिर वो ज़िन्दगी, रिश्ते, वक्त या हो खज़ाना 

दो गज ज़मीन रोटी खाने को पीने को पानी 

ज़िन्दगी सादगी में भी वो अदा है कातिलाना 

कुछ न बदलना जो सीखा इस साल ऐ ज़माना 

अति आत्मविश्वास में अपना सब कुछ न खोना 

ज़िंदा हो इसीलिए नया साल मुबारक ही समझना  

ज़िंदा रहना औरों को ज़िंदा रेहने का प्रोत्साहन देना 

नया साल स्वस्थ सकुशल हो यही है कामना !


~ फ़िज़ा 

Tuesday, December 22, 2020

एहसास !

 

एहसास !

जो उस पल में रेहने संवरने के ख़ुशी में 

बाकि हर पल को भूल जाने या भुला देने में 

जो शायद उम्र भर फिर हो और 

इस पल के बाद फिर शायद कभी न हो  

इस बात का कोई आसरा न भरोसा हो 

मगर उस पल में सौ बार जीने मरने का 

एहसास !

वही एक पल है जो हर सीमाओं को 

लांघकर तल्लीन रह जाना सिर्फ 

उस एक पल के लिए जो दिला दे वो 

एहसास !

जो शायद लफ़्ज़ों का मोहताज़ नहीं 

जिसे सिर्फ महसूस किया जाये 

ये एक सांस है जो सिर्फ ली जाए 

उस सांस में जी और संभल भी जायें  

एहसास !


~ फ़िज़ा 

Wednesday, December 02, 2020

ख़याल से नहीं न वो गए!


 

कुछ दिनों से आ रही थी ख़याल में 

बीती हुई कुछ पलछिन हादसे यादें 

हम सोचते रेह गए बस शायद थोड़ा 

हाँ ! थोड़ा रूककर बात ही कर लेते 

आखिरी बार ही मगर अलविदा सही 

जानते थे के बीमार ज़िन्दगी है कब?

आज अफ़सोस हुआ खबर ये जानकर 

ख़याल आया उन पलों का जब संग थे 

ख़ुशी जो हम दे सके एक-दूसरे को 

शायद अब वो नहीं हैं सोचने के वास्ते 

वो सभी जो सीखा-सिखाया साथ में 

वो सभी अब यादें रेह गयीं मेरे हिस्से में  

अफ़सोस तो हुआ ज़रूर जब सुना के 

वो अब नहीं रहे !!! आज बहुत याद आये !

ख़याल से नहीं न वो गए!


~ फ़िज़ा 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...