Friday, July 21, 2017

ज़िन्दगी से क्या चाहिए ...


ज़िन्दगी के धक्कों में 
कहीं जवानी और ज़िन्दगी 
दोनों खो गयीं
उम्र के दायरे में 
रहगुज़र करते-करते 
ज़िन्दगी से क्या चाहिए 
ये भी न जान पाए 
वक़्त कठोरता से 
बिना रुके चलते रहा 
देख के, के कब समझोगे 
और हम वहीं सोचते रहे 
यादों के काफिलों को 
गुज़रते हुए देखते रहे 
जब काफिले थम गए 
तो याद आया चलो 
अपने लिए न सही 
किसी और के लिए 
जियें!

~ फ़िज़ा 

Sunday, July 09, 2017

बहारों का मौसम है चाँद कहाँ है आज



बहारों का मौसम है चाँद कहाँ है आज 
बहारों का मौसम है यार कहाँ है आज 
छुपकर खेलने वाले अब तो न सता यूँ 
दिन ढले आ ही जाते हैं पंछी घोसलों में 
इंतज़ार की घड़ियाँ यूँही न बढ़ाओ सनम 
शाम के बाद रात भी बहुत देर कहाँ होगी 
वक़्त को रोक लें चलो आ भी जाओ यहीं 
फिर तुम वर्धमान हों या पूरे चाँद के रूप में 
संभाल लेंगे वक़्त को तुम आओ तो सही 
बहारों का मौसम है चाँद कहाँ है आज 
कहाँ है आज?

~ फ़िज़ा 

Friday, July 07, 2017

क्यों वो साथ फ़िज़ा का नहीं ?


पूछती है मेरे अंदर की सहेली मुझसे 
कब तक औरों की ख़ुशी के लिए जिए 
जब औरों को भी ऐसा नहीं लगता हो 
तो क्यों न अपने मन की ख़ुशी जियें ?
दिल कहता है कहीं दूर निकल जाएं
छोड़-छाड़ नगरी और यहाँ के लोग 
बसर कर अजनबियों के संग ज़िन्दगी 
क्या रोक रहा है जो न खुश है कहीं?
रोटी-पानी को बिलखता देख आँसू 
हर तरफ की मारा-मारी देख उदास 
दिल से यही आवाज़ कुछ मैं भी करूँ
किसका लहू है रोके मरते को देख?
हर तरफ है आशा-निराशा कहीं तो 
एक सहारा तो चाहिए जो है उम्मीद 
देने वाला चाहे कोई भी क्यों न हो 
क्यों वो साथ फ़िज़ा का नहीं ?

~ फ़िज़ा 

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...