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Showing posts from 2024

क्रिसमस का चुम्बन

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  बिस्तर की सिलवटों से निकलते   कमरे से अंगड़ाई लेते हुए  जब कमरे में मैं आयी  उसकी नज़र मुझ पर पड़ी  'आई लव यू'  की सिली-सिली हवा  मेहकने लगी ! क्रिसमस के तोहफे समेटकर  वो सीधे कमरे की ऒर बढ़ा  दरवाज़े की चटकनी लगते ही  बाँहों में भर उसने जो चूमा  सीधे दूसरे कमरे ले जा  उसका असीम चूमना   सोचते रेह गयी साल ख़त्म  या शुरू हुयी इस तरह ! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी दे उम्मीद

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  ज़िन्दगी दे उम्मीद तु उसे नज़रअंदाज़ न कर  ये ज़िन्दगी के वो ईशारे हैं जो बुलंद कर दे ! हस्के मिलो सभी से दुश्मनी कहाँ है किसी से   खाली हाथ आये तो खाली हाथ ही जाएंगे ! दुरी रखो जहां तख़मीना हो जल जाने का  इंसान से क्या डरना जब मरना है सबको ! रिश्ते प्यार के बन भी जाये कभी विषाक्त  दोस्ती के नाम से हुतात्मा निरर्थक है दोस्त ! ज़िन्दगी है जब तक तू जीवित है फ़िज़ा  मरकर भी क्या कोई जी सका है यहाँ !! फ़िज़ा 

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

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  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों पर अच्छे हों  बात रोज़ न हों पर सच्चे हों  ऐसों को हमेशा साथ रखें ! हर कोई जूझ रहा ज़िन्दगी में  टेढ़े मुह बात भी करे तुमसे सहानुभूति रखें सभी से ! ज़िन्दगी सिर्फ चार पल की  अहंकार में खोना न सच्चे रिश्ते  अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से ! ~ फ़िज़ा 

सुना है इलेक्शन बस एक खेल है !!

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  हर तरफ एक खौफ सा माहौल है  सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है  अब तक इतनी उत्तेजना नहीं थी कभी  फिर आज-कल में क्या होगया ऐसा ? सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है ! पेहले ये नहीं तो वो पार्टी जीतेगी बस  सब कुछ तो अच्छा ही चल रहा है  एक साल इसे तो दूजे में उसका राज  माहौल तो वोही है जैसे थे वैसे हैं  सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है ! ये खौफ क्यों? इलेक्शन ही तो है  किसी ने कहा इस डर की वजह  यहां की जनता ही है जिसने चुना  ट्रम्प, निठल्ला नफरत फैलाने वाला   सुना है इलेक्शन का ये सब खेल है ! डरना तो पड़ेगा अपने हक़ की बात है  किसी बन्दर के हाथ में तलवार देकर   राजा भी खुद की नाक न बचा पाया  डरना क्या, वोट दो जनहित के लिए  कमला को लाओ इलेक्शन तो खेल है ! सुना है इलेक्शन बस एक खेल है !! ~ फ़िज़ा 

अम्मा का प्यार

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दुःख क्यों होता है ये ऑंसूं क्यों नहीं रुकते  २००५ में मिली थी तुमसे न सोचा कभी  इस कदर स्नेह भर दोगी अपने वास्ते ! पहली मुलाकात और ढेर सारा प्यार  जहाँ भी जाती संग ले जाती हर जगह  अपनायियत और स्नेह से बांध लिया ! भेदभाव न किया बेटी और बहु में  जो भी दिया इज्जत और प्यार से  मुझ ही से मुझे छीन लिया इस कदर ! आज दिल रो रहा है यादों में समेटे हुए  कुछ मोहलत और मिल जाती हमें  कुछ और लम्हे बिता पाते संग तुम्हारे ! ढूंढ रहे हैं तस्वीरों में अब भी तुम्हें  आंसू मगर क्यों नहीं थमते मेरे  तुम्हारे चुटकुलों को सोच बहते हैं आँसू मेरे ! इस कदर छाप छोड़ गए हो दिल पर  तुम सा बनने की कोशिश करेंगे ज़रूर  जाते हुए भी प्यार की सीख दे गयी ! ~ फ़िज़ा   

खुदगर्ज़ मन

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  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! कुछ करने का हौसला बड़ा जगा रहा है  जीवन का नया पन्ना खोलने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! समझा रहा है बेड़ियाँ तो सब को हैं मगर  बेड़ियों की फ़िक्र क्यों जीने से रोके मगर  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! पंछी सा है मन रहता है इंसानी शरीर में  कैसा ताल-मेल है ये उड़ चलने को केहता है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! घूमना चाहता है दुनिया सारी बेफिक्र होके  जाना सभी ने अलग-अलग फिर क्या रोके? आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! मोह-माया के जाल में न धसना केहता है  जाना ही है तो मन की इच्छा पूरी करता जा  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! तू अपनी मर्ज़ी की करता जा खुश रह जा  दुनिया कहाँ सोचेगी जो तू दुनिया की सोचे है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! अब मैंने भी मन से मन जोड़ लिया है  खुश, आज़ाद रेहने का फैसला कर लिया है  आजकल मन ही नहीं मैं भी खुदगर्ज़ हो चला हूँ !! ~ फ़िज़...

स्त्री !

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  एक मात्र वस्तु की हैसियत रह गयी है  स्त्री ! जो संसार को पैदा करे अपनी कोख से  स्त्री ! जिसे संसार पुकारे करुणामयी शक्ति  स्त्री ! जो वक्त आने पर बन जाये महाकाली  स्त्री ! त्याग, सहनशील, ममतामयी, कहलाये  स्त्री ! ईश्वर जैसे महाशक्ति के बाद नाम है तो  स्त्री ! चोट लगे तब भी देखभाल पोषण करे वो  स्त्री ! मंदिरों में रख कर उसका अवतार पूजे वो है  स्त्री ! हर देशवासी कहे भारत है उसकी माँ जो है  स्त्री ! ये सब होकर भी जो है अबला यहाँ वो है  स्त्री ! मंदिरों में सजे लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, हैं ये  स्त्री ! फिर क्यों शोषित है ये सब करके भी हमारी   स्त्री ! प्रतिशोध हो इस कदर के डरे हर कोई नाम से  स्त्री ! खूबसूरत चहरे से पहले उन्हें याद आये प्रतिशोधी  स्त्री ! वो एक सवेरा कब हो यही सोचे है हर कोई आज  स्त्री ! क्या इतनी बुरी है जो वेदना से पीड़ित हो हमेशा  स्त्री ? सोच-सोच कर बुद्धि भ्रष्ट है कोई सूझे न उपाय  स्त्री ! क्यों तू अब भी है अबला नारी क्यों नहीं है महाकाली  स्त्री ! शब्द नहीं मेरे पा...

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

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  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल को जानना है ! नया दौर नयी दिशा सही है मगर  वक्त के संग बदलना चाहता हूँ ! इस पल से इस पल के लोगों से  मैं मिलकर राह बढ़ाना चाहता हूँ ! तुम मुझे अपना सको तो जानूँ दोस्त  मैं हारने वालों में से तो हूँ ही नहीं !!! ~ फ़िज़ा 

इंसान

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  ज़िन्दगी कभी तृप्त लगती है  लगता है निकल जाना चाहिए  कहते हैं न जब सुर बना रहे  तभी गाना गाना बंद करना  ताके यादें अच्छी रहे हमेशा ! ज़िन्दगी कभी बेकार सी लगती है  लगता है निकल ही जाना चाहिए  किसी को किसी की ज़रुरत नहीं  जीने की अब कोई इच्छा भी नहीं  निकल गए तो सब खुश तो होंगे चलो अच्छा था अब चला गया ! क्यों सोचता है इंसान ऐसा ? जो न ग़म, ख़ुशी में समझे फर्क  और एग्जिट की ही सोचे हर वक़्त  क्यों उस किनारे की तलाश करे  जो समंदर के उस पार सी हो  दिखाई न दे क्षितिजहिन दिशाहीन !! ~ फ़िज़ा 

ज्योति, जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  उसकी सादगी सीरत से है सूरत से नहीं  उसका दिल भी किसी हीरे से कम नहीं ! जहां गंभीर हो स्तिथि तो सवेंदन कम नहीं  वहीँ गाना बजे तो ठुमकेदार इस सा नहीं ! बातें तो सब करते हैं ये भी कोई कम नहीं  जब आँखों से बोलतीं हैं उसका जवाब नहीं ! फुर्ती है मस्ती है बच्चों सी संस्कारी कम नहीं  ये 'ज्योति', इसका प्रकाश दिये से कम नहीं ! ऐसी दोस्त सबको मिले जो फर्क करती नहीं  आज मिलो या बरसों उसका प्यार घटता नहीं ! 'फ़िज़ा' यही दुआ करे तेरी खुशियों में कमी नहीं  पचास साल और आये किसी की लगे नज़र नहीं ! खुश रहती है ख़ुशी बांटकर कमज़ोर तो है नहीं  सादगी और मोहब्बत को समझना निर्बल नहीं !!! ~ फ़िज़ा 

समाज के ठेकेदार

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  किसी की अफवाह को हकीकत बनाने लगे  गुनेहगार होकर भी उंगली उस पर उठाने लगे ! ये देख मौके का फायदा हर कोई उठाने लगे  जो कभी हुआ नहीं कहानी बनाकर जोड़ने लगे ! समाज के ठेकेदार बनकर औरों को दबाने लगे  गुनेहगार होकर भी औरों पर लांछन लगाने लगे ! अपनी छोड़ किस हक़ से ये फिक्रमंद होने लगे  भला तो किया नहीं कभी बदनाम बहुत करने लगे ! ~ फ़िज़ा 

अस्पताल

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अस्पताल  एक ऐसी जगह जहाँ जीवन पलता है  जीवन खेलता बेहलता  ख़ुशी देता है  उम्मीद से भरी आशायें रोशन होती है ! अस्पताल  जहाँ जीवन-मृत्यु का तांडव भी है  कभी इस पार निकल आते भी हैं  तो कभी सिर्फ खाली हाथ लौटना है ! अस्पताल  कभी सिर्फ एक पेशा कभी एक फ़र्ज़ है  इंसान ही है जो ग़लत भी हो सकता है  मरीज़ मेहज़  एक मेहमान जिसे जाना है ! अस्पताल  कभी खुशियों के किस्से सुनाये जाते है  कभी ख़ुशी-ख़ुशी कोई घर लौटता है  तो कभी कोई जाकर लौटता ही नहीं ! पुष्पलता को मेरी श्रद्धांजलि !!! ~ फ़िज़ा   

ज़िन्दगी जीने के लिए है

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कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जीना है ज़िन्दगी हमें  कुछ पल की बात है फिर कौन कहाँ  चलो आज से जीने के नियम बनाएं  ख़ुशी के लिए एक दिन निर्धारित करें  घूमें-फिरें मस्ती करें ज़िन्दगी को लूट लें बाकी तो सब चलता रहेगा ज़िन्दगी है  पटरी पर है तो चलता भी रहेगा बेझिझक  महीने में एक दिन अपने हित के लिए रख छोड़  ज़िन्दगी जीने के लिए है, यूँही गंवाना नहीं है !!! ~ फ़िज़ा   

Garmi

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  Subha ki yaatra mandir ya masjid ki thi, Dhup se tapti zameen pairon mein chaale, Suraj apni charam seema par nirdharit raha, Gala sukha to shareer paseene se latpath hua, Garmi se vichalit marti huyi bhuk to pyaas jagati, Ye garmi itni jaldi aagayi aayi to thami kyun? Lachaar har taraf log aur paani ki kami, Ye kaisa grahan hai, jo suraj haavi hai Chand nahi !! ~ fiza 

Shradhanjali

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  Oosko haste dekha tha hamesha, Oos se milkar vo khushgawar laga, Har ghalt ko ghalt kehane ka rutba, Aaj sabse roothkar chala gaya vo, Hansta hoga is bereham duniya par, Kaash, kuch aur pal bita paate sang, Har hansta hua andar khush nahi, Koi samajh leta is baat ko, kaash! Kishore, dil toot gaya aaj socha nahi, Ek aur accha insaan chodgaya aaj, Naman, jahaan ho khush raho - shradhanjali ! ~ fiza

Suraj

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  Dhalte suraj ko dekh, Umeed lagate hain kal ka, Vo phir aayega shaam ke vaste ! Kaun hai vo mera jo, Is umeed ko nibhata hai, Haan, vo aayega phir jayega, Magar thode na mere vaaste ! Uska kaam hai, shayad vajah bhi, Kisi se na rishta na lagaav itna, Masti mein rehta jaisa chaahe chamakta, Phailata gulabi rang jaane ki khushi ke vaaste !  ~ fiza 

Kisko ghar samjhe ?

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  Paida huye kaheen to bade kaheen, Kisko ghar samjhe, kisko naheen ! Roti khilaane wale se juda roti kamaane chale kaheen, Roti denewala badal gaya, ab apne kaun naheen ! Apnon se dur basa liya hai ghar roti ke liye, Jahaan pale wahaan ka mausam raas naheen ! Ab to ghar samjhe hai paraya kaheen, Khanabadosh si zindagi thikana naheen ! Kaun apna ? Kya ghar kya sar-zameen, Ab to har taraf tanashaahi, mara-maari kaheen ! Paida huye kaheen to bade kaheen, Kisko ghar samjhe, kisko naheen ! ~ fiza

Khoj

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  Zindagi ki khushi Kisi ko Uske jeene mein hai, To kisi ko uske sangharsh, To oos sangharsh se oobharna, To kisi ko oos par kamaana ! Har koi apni zindagi jee raha hai, Apni khushi ke saamaan Ki khoj !! ~ fiza

Garmi

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  Achanak neend se hadbadakar, Uthi, To dekha lath-path paseene se ! Kya bhayanak sapna tha? Nahi, bijali chali gayi thi, Garmi iska maza loot rahi thi, Paas ke tharmas se paani peekar, Koshish phir huyi sone ki ! Neend na aane par samachar pad liya -  'April se June tak bharat mein garmi zabardast Raaz karegi!' Har taraf isi ki charcha hai Garmi !!! ~fiza

Kyun?

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  Zindagi jeene ke liye hai, To kyun  hum auron ko jeene se rokte hain? Dusron ko khush dekh, Kyun nahi Usmein hum shamil hote hain? Ye irsha, dwesh, bhedbhav Kyun? Insaan hain, insaani dard jaante hain Phir kyun Khud ko auron se alag Samajhte hain? Aakhir kyun? ~fiza

Waqt se maara maari !!!

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Waqt ki baat hai, aur baat waqt ki he hai, Iska hona-na hona mushkil mein daalta hai ! Paise kharch ho jayein to phir kama lena hai Waqt ka kya, kharch ho gaye to nahin milna hai ! Khana jab bach jaye to ose kal bhi khana hai Waqt bach jaye gar to boriyat se marna hai ! Har masle ka, kam-jyada hul bhi kuch hota hai Zindagi aur waqt kam-jyada huye to sab bigadna hai ! Is waqt ko kya naam de ye 'fiza' mayus hai Jahan ise thamna hai waheen kam pad jata hai ! ~ fiza

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

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  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में  उनका खेल देखने वाले हैं कम  ! अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर  करे भिन्नता अपने ही वर्ग से ! जहाँ समानता की बात करते हैं  वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं ! दोनों को कब हम बराबर देखेंगे  तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है ! आओ मिलके करें ये प्रण अब से  करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष ! मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी  आना है और आगे उसे बढ़ने दो ! ~ फ़िज़ा 

जाने क्या हुआ है

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  आजकल में जाने क्या हुआ है  पन्द्रा -सोलवां सा हाल हुआ है  जाने कैसे चंचल ये मन हुआ है  बरसात की बूंदों सा थिरकता है  कहीं एक गीत गुनगुनाता हुआ है  वहीं दूर से चाँद मुस्कुराता हुआ है  ये सारी साजिशें किसने रचाई है  ऐसा गुमान सा तो नहीं कुछ हुआ है मगर फिर भी सोचूं ये क्या हुआ है  चलो छोड़ो भी क्या सोचना इतना  खतरे का साया सा कोई मंडराता है ! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने

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  ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने  बचपन को जवानी में ढलते देखा है  साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है ! सुना जॉर्ज अंकल की बेकरी नहीं रही   वो अयप्पा मंदिर बहुत बड़ा बनगया अब  पेड़ों के पत्ते झड़कर फिर आ जाते हैं  दोस्ती में वो वफ़ादारी नहीं है अब  ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने  बचपन को जवानी में ढलते देखा है  साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !! पहले राम -रहीम साथ बैठते थे  अब वो आलम बहुत कम देखा है  खुलकर बोलने का रिवाज़ कम होते देखा है  सलाम न दुआ बस राम का चलन देखा है  ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने  बचपन को जवानी में ढलते देखा है  साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!! वक़्त के साथ सबकुछ तो बदल जाता है  बचपन बचपन नहीं बस यादों में देखा है  उम्र के गुज़रते बहुत कुछ सीखा है मैंने  अपनों को दूर, दूसरों को अपनाते देखा है  ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने  बचपन को जवानी में ढलते देखा है  साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!!! ~ फ़िज़ा 

तू रुख मोड़ बढ़ जा आगे !

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कुछ रिश्ते, कुछ बातें होने के लिए होतीं हैं  वर्ना यूँही कौन कैसे किसी को समझता? क्या अच्छा और अच्छा नहीं कैसे समझते? जब तक हादसे और किस्से न समझाते हमें ! जब आँख खुले तभी सवेरा समझ लेना ठीक  बेकार सोचने में वक़्त ज़ाया करने से क्या ? जीवन की यही रीत है प्रकृति ने सिखलाई  जो भी आये सामने तू रुख मोड़ बढ़ जा आगे ! ~ फ़िज़ा 

नया साल मुबारक हो आपको!

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  आपकी ज़िन्दगी इस हलवे की तरह हो  मीठा, और स्वादिष्ट ! ज्यादा मिठास न हो इसलिए  एक आध इलायची का दाना मिल जाये  मीठा तो कम मगर ज़ायका बना रहे  काजू-बादाम का रोड़ा बीच में  ले आये हल्का सा बदलाव  मगर ज़िन्दगी की मिठास यूँही बना रहे  ज़िन्दगी आपकी इस हलवे की तरह हो ! आपको नया साल मुबारक हो ! ~ फ़िज़ा