ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने

 


ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !

सुना जॉर्ज अंकल की बेकरी नहीं रही  

वो अयप्पा मंदिर बहुत बड़ा बनगया अब 

पेड़ों के पत्ते झड़कर फिर आ जाते हैं 

दोस्ती में वो वफ़ादारी नहीं है अब 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!

पहले राम -रहीम साथ बैठते थे 

अब वो आलम बहुत कम देखा है 

खुलकर बोलने का रिवाज़ कम होते देखा है 

सलाम न दुआ बस राम का चलन देखा है 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!!

वक़्त के साथ सबकुछ तो बदल जाता है 

बचपन बचपन नहीं बस यादों में देखा है 

उम्र के गुज़रते बहुत कुछ सीखा है मैंने 

अपनों को दूर, दूसरों को अपनाते देखा है 

ज़िन्दगी को बदलते देखा है मैंने 

बचपन को जवानी में ढलते देखा है 

साथ पढ़े दोस्तों को बदलते देखा है !!!!


~ फ़िज़ा 

Comments

Onkar said…
अति सुन्दर
Dawn said…
Onkar ji aapka bahut bahut shukriya kavita padhne aur tippani dene ka.

सुशील कुमार जोशी ji, aapka dhanyawaad aapko meri kavita pasand aayi.

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