पंछियों की गुफ्तगू


आज कहने को कुछ भी नहीं
पंछियों को गुफ्तगू करते देखा 
जहाँ दो साथी एक परिवार के 
गृहस्थी के रोज़मर्रे और ये झमेले 
दोनों निकले घर से बटोरने चने 
बटोरना तो मगर चुपके -चुपके 
क्यों न एक बटोरे चुपके-चुपके 
और दूजा देखे पेहरा देते-देते 
रंगीले जोड़ी की मिली-जुली  
हरकत तो देखो है एकता उनमें भी !

~ फ़िज़ा 

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